Sunday, November 29, 2009

काश....

काश ऐसा कोई मंजर होता..
काश ऐसा कोई मंजर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता..
काश ऐसा कोई मंजर होता..

जमा करता जो मैं आये हुए संग
जमा करता जो मैं आये हुए संग
सर छुपाने के लिए घर होता..
सर छुपाने के लिए घर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..

इस बलंदी पे बहोत तनहा हूँ
तनहा हूँ
बहोत तनहा
तनहा तनहा 
इस बलंदी पे बहोत तनहा हूँ
काश मैं सब के बराबर होता..
काश मैं सब के बराबर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..


उसने उलझा दिया दुनिया में मुझे
उसने उलझा दिया दुनिया में मुझे
वरना इक और कलंदर होता..
वरना इक और कलंदर होता..
मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..


मेरे काँधे पे तेरा सर होता...
काश ऐसा कोई मंजर होता..
काश....

Wednesday, November 25, 2009

खुसरौ


जिहाल  -ए  मिस्कीं  मकुन  तगफुल,
दुराये नैना बनाये बतियाँ
की  ताब  -ए  हिज्राँ  नदारम  ए  जाँ ,
न ले हो काहे लगाये छतियाँ

चो  शमा  सोज़ान  चो  ज़र्रा  हैरान,
हमेशा  गिरियाँ  बे  इश्क  आन  मह
न नींद नैना न अंग चैना
न आप ही आवें न भेजें पतियाँ

 
यकायक  अज  दिल  बसद  फरेबम 
 बबुर्द  चशमश  -ए  करार्र  तस्कीं 


किसे पड़ी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियाँ

शबान  -ए  हिज्राँ  दराज़  चुन  ज़ुल्फ़
व  रोज़  -ए  वसलत  चो  उम्र  कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ

बहक्क  -ए   रोज़  -ए  विसाल  -ए  दिलबर
की  दाद  मरा  ग़रीब  खुसरौ
सपत मन के वराए राखूँ
जो जाए पाऊँ पिया के खतियाँ 


Sunday, November 22, 2009

नजीर अकबराबादी

जब फागुन रंग झमकते हो
तब देख बहारें होली की.. तब देख बहारें होली की...
जब फागुन रंग झमकते....
परियों के रंग दमकते हो
खुम शीशे जाम छलकते हो
मेहबूब नशे में छकते हो
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...

नाच रंगीली परियोंका
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़के रंग भरें
कुछ घूंगरुं ताल छनकते हो
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...

मुलाल गुलाबी आँखें हो
और हाथों में पिचकारी हो.....
उस रंग भरी पिचकारी को
अंगिया पर तककर मारीं हो
सीनों से रंग ढलकते हो
तब देख बहारें होली की..   
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...


-नजीर अकबराबादी

छाप तिलक सब छिनी रे  मोसे नैना मिलायके
प्रेम भटी का मधवा पिलायके मतवारी करे
मोसे नैना मिलायके
बल बल जाऊ मैं तोरे रंग रिजवा अपनी सी रंग दीनी रे
छाप तिलक सब छिनी रे  मोसे नैना मिलायके
खुसरो निजाम बल बल जाइये मोहे सुहागन की भीनी रे
मोसे नैना मिलायके
छाप तिलक सब छिनी रे  मोसे नैना मिलायके

Sunday, November 15, 2009

गालिब

यह न थी हमारी किस्मत, के विसाल- ए- यार होता
अगर और जीते रहते, तो यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पर जीये हम, तो यह जान झूट जाना
के ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता

तेरी नाज़ुकी से जाना, के बंधा था इहेद बड़ा
कभी तू न तोड़ सकता, अगर ऊस्तुवार होता

कोइ मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर- ए- नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता

ये कहाँ की दोस्ती है, के बने हैं दोस्त नासेह
कोइ चारासाज़ होता, कोइ ग़मगुसार होता

रग- ए- संग से टपकता, वो लहू कई फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरारह होता

ग़म अगरचेह जान गुलिस है, पर कहाँ बचाएँ के दिल है
ग़म- ए- इश्क गर न होता, ग़म- ए- रोज़गार होता

कहूँ किस से मैं के क्या है, शब् -ए -ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क- ए- दरिया
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता

उसे कौन देख सकता, के यगाना है वो यकता
जो दूई की बू भी होती, तो कहीं दो चार होता

ये मसाल- ए- तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'गालिब '
तुझे हम वली समझते, जो न बादा ख्वार होता

मेरे हमनफस मेरे हम नवाँ


 मेरे हमनफस मेरे हम नवाँ मुझे दोस्त बनके दगा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जान वलब, मुझे जिंदगी की दुआ न दे


मेरे दाग-ए-दिल से है रोशनी, उसी रोशनी से है जिंदगी
मुझे डर है अए चारागर, ये चराग तू ही बुझा न दे


कभी जाम लब पे लगा दिया कभी मुस्कुराके हटा दिया
तेरे छेड़-छाड़ में साथिया, मेरी तशनगी को बढ़ा न दे



मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाजिश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे


मेरा अज़्म इतना बलंद है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे खौफ आतिशे गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे


वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुब्बू, अरे ओ 'शकील'  कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे




-'शकील'

Wednesday, November 4, 2009

साहिर होशियारपुरी

कौन  कहता  है  मोहब्बत  की  ज़ुबाँ  होती  है ..
यह  हकीकत  तो  निगाहों  से  बयाँ  होती  है

वो  न  आये  तो  सताती  है  खलिश  सी  दिल  को ..
वो  जो  आये  तो  खलिश  और  जवाँ होती  है

रूह  को  शाद  करे  दिल  को  जो  पुरनूर  करे ..
हर  नज़ारे  में  ये  तनवीर  कहा  होती  है

जब्त -ए -सहरापे  मोहब्बत  को  कहा  तक  रोके ..
दिल  में  जो  बात  हो  आँखों  से  अयाँ  होती  है

ज़िन्दगी  एक  सुलगती  सी  चिता  है  साहिर ..
शोला  बनती  है  ना  ये  बुझके  धुवाँ  होती  है

कौन  कहता  है  मोहब्बत  की  ज़ुबाँ  होती  है ..
यह  हकीकत  तो  निगाहों  से  बयाँ  होती  है

- साहिर होशियारपुरी



मराठी रुपांतर


कोण बोलत आहे की प्रेमाचं बोलण शक्य होत आहे 
ही सत्यता तर नजरेच्या प्रत्यंतरात शक्य होत आहे

ते नाही आले तर छळत असते सल हृदयाला
ते जर आले तर सलाला अजून चिरतारुण्य शक्य होत आहे

आत्माला प्रसन्नित करेन हृदयाला जो तेजोमय करेन 
प्रत्येक दृश्यात अशी प्रकाशमानता कुठे शक्य होत आहे

शुष्क-सहनशीलतेत प्रेमाला कुठवर थोपवावे
हृदयामध्ये जी गोष्ट असते डोळ्यांतून शक्य होत आहे

जीवन एक धुमसणारी चिता आहे 'साहीर'
आग बनत आहे न हे विझून धूर शक्य होत आहे

-साहिर होशियारपुरी