Wednesday, July 27, 2011

गुलों में रंग भरे, बादे-नौबहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

क़फ़स उदास है यारो, सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहरे-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले

कभी तो सुब्ह तेरे कुंजे-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सरे-काकुल से मुश्के-बार चले

बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आयेंगे ग़मगुसार चले

जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शबे-हिज्राँ
हमारे अश्क तेरी आक़बत सँवार चले

हुज़ूरे-ए-यार हुई दफ़्तरे-जुनूँ की तलब
गिरह में लेके गरेबाँ का तार तार चले

मक़ाम 'फैज़' कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले 



- फैज़

Tuesday, July 5, 2011

मोहसीन नक़वी

इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचोमें गुम रहते हो

तेज हवा ने मुझसे पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो


कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यूँ लगते हो

हमसे ना पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो

- मोहसीन नक़वी