Thursday, September 22, 2011

ले चला..

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से बेहतर था न आना तेरा

तू जो ऐ जुल्फ परेशान रहा करती है
किसके उजड़े हुए दिल में ठिकाना तेरा

आरजू ही न रहीं सुबह ऐ वतन की मुझको
शाम ऐ ग़ुरबत है अजब वक़्त सुहाना तेरा

अपनी आँखों में अभी कौंध गयी बिजली सी
हम न समझे के यह आना है के जाना तेरा

- दाग देहलवी

Sunday, September 11, 2011

मुद्दतों हम पे गम उठाये हैं 
तब कहीं जाके मुस्कराए हैं
एक निगाह-ए-खुलूस के खातिर 
जिंदगी भर फरेब खाए हैं

मुझे फिर वही याद आने लगे है
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे है

सुना है हमें वो बुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे है

यह कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको
यह कहने में उनसे ज़माने लगे है

क़यामत यक़ीनन करीब आ गयी है
खुमार अब तो मस्जिद में जाने लगे है

Thursday, September 8, 2011

राज़ की बातें

राज़ की बातें लिखी और ख़त खुला रहने दिया
जाने क्यूँ रुसवाईओं का सिलसिला रहने दिया

उम्र भर मेरे साथ रहकर वो ना समजा दिल की बात
दो दिलों के दरमियाँ इक फ़ासला रहने दिया

अपनी फ़ितरत बदल पाया न इसके बावजूद
खत्म की रंजिश मगर फिर भी गिला रहने दिया

मैं समज़ता था ख़ुशी देगी मुझे सबीर-ए-फरेब
इसलिए मैं ने ग़मों से राबिता रहने दिया


- सबीर जलालाबादी

Tuesday, September 6, 2011

हिज्र की रात का अंजाम तो प्यारा निकला..
वो ही सूरज के जो डूबा था दोबारा निकला..

वक़्त ने जब भी मेरे हाथ से मिस्हल छिनी
ज़हन में तेरे तसव्वुर का सितारा निकला..

मैं तेरे क़ुर्ब से डरता हूँ के तू जिन्दा रहें
मैं समन्दर में जब उतरा तो किनारा निकला..

तू के था बज़्म में तस्वीर कहाँ भेजी थी 
मेरी तन्हाई में क्यूँ अंजुमन आरा निकला..

जुल्मते शब ने किया जिनका तसव्वुर मुमकिन
यह अँधेरा तो उजाले का सहारा निकला..