Monday, November 28, 2011

आँखों में जल रहा है..

आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ

चूल्हें नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ

आँखों के पोछने से लगा आँच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं 
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ

- गुलज़ार
 

जगजीत सिंग

जिंदगी यूँ हुई बसर तनहा
काफिला साथ और सफ़र तनहा

अपने साये से चौंक जाते है
उम्र गुजरी है इस कदर तनहा

रात भर बोलते है सन्नाटे
रात कांटे कोई किधर तनहा

दिन गुजरता नहीं है लोगो में
रात होती नहीं बसर तनहा

हम ने दरवाज़े तक तो देखा था 
फिर न जाने गए किधर तनहा

- गुलज़ार

अब और..

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाये हम
ये भी बहोत है तुझको अगर भूल जाये हम

इस जिंदगी में इतनी फ़रागत किसे नसीब
इतना ना याद आ के तुझे भूल जाये हम

तू इतनी दिलज़दा तो न थी ए शब्-ए-फिराक
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाये हम

वो लोग अब कहाँ है जो कहते थे कल फराज
ये ए खुदा ना कर तुझको भी रुलाये हम

- अहमद फ़राज़