Tuesday, January 3, 2012

वोह तो न मिल सकें..

वोह तो न मिल सकें हमें रुसवाइयाँ मिली
लेकिन हमारे इश्क को रानाइयां मिली


आँखों में उनकी डूब के देखा है बारहां
जिनकी थी आरजू न वो गहराइयाँ मिली


आइना रख के सामने आवाज दी उसे
उसके बगर जब मुझे तन्हाईयाँ मिली


आए थे वो नजर मुझे फूलों के आसपास
देखा करीब जाके तो परछाइयाँ मिली


पूछा जो दिल की मैंने तबाही का माजरा
हसकर जवाब दे मुझे अंगड़ाइयां मिली


नासिर दिल-ऐ-तबाह न उनको दिखा सदा
मिलने को बारहां उसे तन्हाईयाँ मिली


                            - नासिर

10 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  2. देखा करीब जाके तो परछाइयाँ मिलीं ....
    और मज़ा तो ये है कि हम उन परछाइयों को भी नहीं छोडना चाहते ...जिए जा रहे हैं उन्ही को पकडे हुए.

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  3. वाह!!
    बहुत खूब..

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  4. हँसकर जवाब में मुझे अंगड़ाइयाँ मिली.
    पूरी गज़ल ही लाजवाब है मगर इस पंक्ति ने तो बस लूट ही लिया.

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  5. khayaalaat ki rau mei behti huee
    achhee gazal ke liye
    badhaaee ... !

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  6. बहुत सुन्दर.
    सदा जी की हलचल से आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.

    आभार.

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  7. धन्यवाद आप सब का..
    यह नासिर साहब की अदाकारी है.. मेरा तो सिर्फ एक माध्यम है आप सबको याद दिलाने का..
    धन्यवाद पुनह एक बार.. और सदा जी आपका खास तौर से..

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