Tuesday, March 27, 2012

कोई...

कोई समझाए ये क्या रंग है मयखाने का
आँख साक़ी की उठे और नाम हो पैमाने का

गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालो
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का

चश्मे-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊं कहीं मयखाने का

अब तो हर शाम गुज़रती है इसी कूचे में
ये नतीज़ा हुआ नासेह तेरे समझाने का

मंजिल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इकबाल'
इश्क है नाम ख़ुद अपने पे गुज़र जाने का 

- इकबाल

Thursday, March 1, 2012

पुछा  किसी  ने  हाल  किसी  का  तो  रो  दिए
पानी  में  अक्स  चाँद  का  देखा  तो  रो  दिए

नग़मा  किसी  ने  साज़  पर  छेड़ा  तो  रो  दिए
घुंचा  किसी  ने  शाख  से  तोड़ा  तो  रो  दिए

उड़ता  हुवा  ग़ुबार  सर -ए -राह  देख  कर
अंजाम  हम  ने  इश्क  का  सोचा  तो  रो  दिए

बादल  फिजा  में  आप  की  तस्वीर  बन  गई
साया  कोई  खयाल  से  गुज़रा  तो  रो  दिए

रंग -ए -शफक  से  आग  शागुफों  में  लग  गई
सगहर  हमारे  हाथ  से  छलका  तो  रो  दिए