Monday, July 16, 2012

क्या है..

अपनी   तस्वीर  को  आँखों  से  लगाता  क्या  है
इक  नज़र  मेरी  तरफ  देख  तेरा  जाता  क्या  है
 
 मेरी  रुसवाई  में  वो  भी  है  बराबर  के  शरीक़
मेरे  किस्से  मेरे  यारों  को  सुनाता  क्या  है
 
 पास  रह  कर  भी  ना  पहचान  सका  तू  मुझ  को 
दूर  से  देख  कर  अब  हाथ  हिलाता  क्या  है
 
 उम्र  भर  अपने  गिरेबाँ  से  उलझने  वाले 
तू  मुझे  मेरे  ही  साये  से  डराता  क्या  है
 
 मैं  तेरा  कुछ  भी  नहीं  हूँ  मगर  इतना  तो  बता 
देख  कर  मुझ  को  तेरे  ज़ेहन  में  आता  क्या  है
 


सफ़र- ए- शौक़  मैं  क्यूँ  काँपते  पाँव  तेरे 
दूर  से  देख  के  अब  हाथ  उठाता  क्या  है
 



मर  गए  प्यास  के  मारे  तो  उठा  अब्र- ए- करम 
बुझ  गयी  बज़्म  तो  अब  शम्मा  जलाता  क्या  है 
 
  शहजाद  अहमद 

Monday, July 2, 2012

कब ख्याल आपका नहीं होता
दर्द दिल से जुदा नहीं होता

हाल-ए-दिल किस तरह लिखूं उनको
हाथ दिल से जुदा नहीं होता

दिल ने कुछ उनसे कह दिया होगा
बेवजह वो खफा नहीं होता

वो खफा होते है तो होने दो
वो किसीका खुदा नहीं होता