Monday, October 4, 2010

वो  जो  हम  में  तुम  में  करार  था , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो 
वही  यानी  वादा  निबाह  का , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो 

वो  जो  लुत्फ़  मुझ  पे  थे  पेश्तर , वो  करम  के  हाथ  मेरे  हाल  पर
मुझे  सब  हैं  याद  ज़रा  ज़रा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

वो  नए  गिले  वो  शिकायतें , वो  मज़े  मज़े  की  हिकायतें
वो  हर  एक  बात  पे  रूठना , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो


कोई  बात  ऎसी  अगर  हुई  जो  तुम्हारे  जी  को  बुरी  लगी
तो  बयां  से  पहले  ही  भूलना  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो


सुनो  ज़िक्र  है  कई  साल  का , कोई  वादा  मुझ  से  था  आप  का
वो  निबाहने  का  तो  ज़िक्र  क्या , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

कभी  हममें  तुम  में  भी  चाह  थी , कभी  हम  से  तुम  से  भी  राह  थी
कभी  हम  भी  तुम  भी  थे  आशना , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

हुए  इत्तेफाक  से  गर  बहम , वो  वफ़ा  जताने  को  दम -बा -दम
गिला -ए-मलामत -ए -अर्क़बा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

कभी  बैठे  सब  हैं  जो  रू -ब-रू  तो  इशारतों  ही  से  गुफ्तगू
वो  बयान  शौक़  का  बरमला  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

वो  बिगड़ना  वस्ल  की  रात  का , वो  न  मानना  किसी  बात  का
वो  नहीएँ  नहीं  की  हर  आन  अदा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

जिसे  आप  गिनते  थे  आशना  जिसे  आप  कहते  थे  बावफ़ा
मैं  वही  हूँ  "मोमिन "-ए -मुब्तला  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो