Wednesday, June 22, 2011

आखिर कब तक..

झूटी सच्ची आस पे जीना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..
मय की जगह खून-ए-दिल पीना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

सोचा है अब पार उतरेंगे या टकरा कर डूब मरेंगे..
तूफानों की जद पे सफिना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

एक महीने के वादे पर साल गुजरा फिर भी ना आये..
वादे का ये एक महिना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..

सामने दुनिया भर के गम है और इधर इक तनहा हम है..
सैकड़ों पत्थर इक आइना कब तक आखिर..
आखिर कब तक..