Monday, August 15, 2011

शहजाद

गुल  खिले  चाँद  रात  याद  आई 
आपकी  बात  बात  याद  आई

एक  कहानी  की  हो  गयी  तकमील 
एक  सावन  की  रात  याद  आई

अश्क  आँखों  में  फिर  उमड़  आये 
कोई  माज़ी  की  बात  याद  आई

उनकी  महफ़िल  से  लौट  कर  'शहजाद'
रौनक -ए -कायनात  याद  आई

Friday, August 12, 2011

गम-ए-इंतजार में इंतजार क्या करूँ
ये वस्ल-ए-रात में इकरार क्या करूँ

कोशिश की राहों में बसाया घर मैं ने
आ के पास तेरे मैं इज़हार क्या करूँ


Wednesday, August 10, 2011

कोई..

ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोई
इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोई

ये न पूछो कि ग़मे-हिज्र में कैसी गुज़री
दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोई

हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचा
आपकी तरह से मेहमान बुलाए कोई

तर्के-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसे
करके एहसान न एहसान जताए कोई

क्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़
मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोई

सर्द मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्द
रखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोई

आप ने दाग़ को मुँह भी न लगाया अफ़सोस
उसको रखता था कलेजे से लगाए कोई


- दाग देहलवी

Monday, August 8, 2011

चला गया ...

दयार-ए-दिल की रात में चराग सा जला गया 
मिला नहीं तो किया हुआ वो शक्ल तो दिखा गया

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िन्दगी ने भर दिया
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

यह सुबहओं की सफेदिया यह दोपहर की जर्दिया
अब आईने में देखता हूँ में कहाँ चला गया  

वो दोस्ती तो खैर अब नसीब-ए-दुश्मन हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया 

यह किस खुशी की रीत पर ग़मों को नींद आ गई
वोह लहर किस तरफ गई यह में कहाँ समां गया