Sunday, March 7, 2010



कोई दोस्त है ना रकीब है
तेरा शहर कितना अजीब है

वो जो इश्क था वो जूनून था
ये जो हिज्र है ये नसीब है

यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूँ
यहाँ कौन इतना करीब है


मैं किसे कहूँ मेरे साथ चल
यहाँ सबके सर पे सलीब है

तुझे देखकर मैं हूँ सोचता
तू हबीब है या रकीब है

- राना साहरी  

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