Saturday, September 18, 2010

किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...


वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..


दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..


जुल्म यह है के है यकता तेरी बेगानारवी
लुफ़्त यह है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ...
 
 
 
 Video _ http://www.youtube.com/watch?v=TSJlQWhC-dc&feature=player_embedded#!

12 comments:

  1. किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
    सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...

    badhiyan. !

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  2. dhanywad
    lafj shayar ke hai..
    sirf yahan peshkari hai.

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  3. वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
    अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..
    बहुत अच्छी पंक्तियां हैं...अच्छी रचना

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  4. Veenaji yah rachana Ahmed Nadeem Qasmi ki hai..

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  5. दोस्त ही हो खंजेर लिए इन्तेज़ार कर रहे हैं........
    दुश्मन होते तो निपट लेता.

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  6. dost hi kabhi maseeha banke aur kabhi qatil banke samne aata hai..
    aur na kisi dushman ki yah khasiyat hai..

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  7. दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
    ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..

    बहुत ख़ूब!
    वाह!

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  8. वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
    अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..


    दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
    ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..

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