जलवा ब कद्र ए ज़र्फ़ ए नज़र देखते रहे
क्या देखते हम उनको मगर देखते रहे
अपना ही अक्स पेश ए नज़र देखते रहे
आइना रु ब रु था जिधर देखते रहे
उनकी हरीम ए नाज़ कहाँ और हम कहाँ
नक्श ओ निगार ए पर्दा ए दर देखते रहे
ऐसी भी कुछ फ़िराक की रातें गुज़र गयीं
अपना ही अक्स पेश ए नज़र देखते रहे
आइना रु ब रु था जिधर देखते रहे
उनकी हरीम ए नाज़ कहाँ और हम कहाँ
नक्श ओ निगार ए पर्दा ए दर देखते रहे
ऐसी भी कुछ फ़िराक की रातें गुज़र गयीं
जैसे उन्ही को पेश ए नज़र देखते रहे
हर लहजा शान ए हुस्न बदलती रही जिगर
हर आन हम जहाँ ए दीगर देखते रहे
हर लहजा शान ए हुस्न बदलती रही जिगर
हर आन हम जहाँ ए दीगर देखते रहे
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