Sunday, September 11, 2011

मुद्दतों हम पे गम उठाये हैं 
तब कहीं जाके मुस्कराए हैं
एक निगाह-ए-खुलूस के खातिर 
जिंदगी भर फरेब खाए हैं

मुझे फिर वही याद आने लगे है
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे है

सुना है हमें वो बुलाने लगे है
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे है

यह कहना है उनसे मोहब्बत है मुझको
यह कहने में उनसे ज़माने लगे है

क़यामत यक़ीनन करीब आ गयी है
खुमार अब तो मस्जिद में जाने लगे है

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