Monday, November 28, 2011

जगजीत सिंग

जिंदगी यूँ हुई बसर तनहा
काफिला साथ और सफ़र तनहा

अपने साये से चौंक जाते है
उम्र गुजरी है इस कदर तनहा

रात भर बोलते है सन्नाटे
रात कांटे कोई किधर तनहा

दिन गुजरता नहीं है लोगो में
रात होती नहीं बसर तनहा

हम ने दरवाज़े तक तो देखा था 
फिर न जाने गए किधर तनहा

- गुलज़ार

1 comment:

  1. क़ाफ़िला साथ
    और सफ़र तनहा ....

    वाह - वा !!

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