Monday, December 26, 2011

हस्ती अपनी..

हस्ती अपनी हबाब की सी है
यह नुमाइश सराब की सी है

नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिये
पंखड़ी इक गुलाब की सी है

मैं जो बोला कहा की यह आवाज़
उसी ख़ाना ख़राब की सी है

बार बार उसके दर पे जाता हूँ
हालत अब इज़तिराब की सी है

मीर उन नीम बाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

- मीर तक़ी मीर

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