Sunday, January 1, 2012

ज़िन्दगी यूँ थी के..

ज़िन्दगी यूँ थी के जीने का बहाना तू था
हम फ़क़त ज़ेब-ए-हिकायत थे, फ़साना तू था


हम ने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में, वो लोग 
आते जाते हुए मौसम थे, ज़माना तू था


अब के कुछ दिल ही ना माना के पलट कर आते
वरना हम दर-ब-दरों का तो ठिकाना तू था


यार-ओ-अगयार के हाथों में कमानें थें फ़राज़
और सब देख रहे थे के निशाना तू था


अहमद  फ़राज़

2 comments:

  1. बहुत ख़ूब !!
    हम ने जिस जिस को भी चाहा तेरे हिज्राँ में वो लोग
    आते जाते हुए मौसम थे ,ज़माना तू था
    सर शायद कर्सर की ग़लती से इस शेर में शब्द थोड़ा आगे पीछे हो गए हैं
    अहमद फ़राज़ की तो बात ही कुछ अलग है

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  2. धन्यवाद..
    शायद कर्सर की गलती नहीं, मेरे ही समझने में गलती हुई थी..

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