देख तो दिल के जाँ से उठता है
यह धुआं सा कहाँ से उठता है
गोर किस दिल जले की है यह फलक
शोला एक सुबह याँ से उठता है
बैठने कौन दे हैं फिर उसको
जो तेरे आस्ताँ से उठता है
यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहां से उठता है
इश्क एक मीर भारी पत्थर है
बोज़ कब नातवाँ से उठता है
-मीर
-मीर
mehandi hassan ne khup chhan gayali aahe hi ghazal.
ReplyDeleteGood taste!!
thanks...
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