Monday, September 21, 2009

उसका मुख एक ज्योत है..
घूँघट है संसार..
घूँघट में.. वोह छुप गया....
मुख पर आँचल डाल..

जाहिदने मेरा हौसले-इमाँ नहीं देखा..
जाहिदने मेरा हौसले-इमाँ नहीं देखा..
रुखपर तेरी ज़ुल्फों को परेशाँ नहीं देखा..
रुखपर तेरी ज़ुल्फों को परेशाँ नहीं देखा..

हर हाल में बस पेश--नजर है वही सूरत..
हर हाल में बस पेश--नजर है वही सूरत..
...................................................
मैंने कभी रूहे शब्--हिजरा नहीं देखा..
मैंने कभी रूहे शब्--हिजरा नहीं देखा..
रुखपर तेरी ज़ुल्फों को परेशाँ नहीं देखा..जाहिदने मेरा हौसले-इमाँ नहीं देखा..

आये थे सभी तरह के जलवे मेरे आगे..
आये थे सभी तरह के जलवे मेरे आगे..
................................................
मैंने मगर दीदार--हैरान नहीं देखा..
मैंने मगर दीदार--हैरान नहीं देखा..
जाहिदने मेरा हौसले-इमाँ नहीं देखा..रुखपर तेरी ज़ुल्फों को परेशाँ नहीं देखा..

क्या क्या हुआ हंगाम--जुनूँ ये नहीं मालूम..
क्या क्या हुआ हंगाम--जुनूँ ये नहीं मालूम..
...............................................................
कुछ होश जो आया तो गरीबाँ नहीं देखा..
कुछ होश जो आया तो गरीबाँ नहीं देखा..
जाहिदने मेरा हौसले-इमाँ नहीं देखा..रुखपर तेरी ज़ुल्फों को परेशाँ नहीं देखा..

क्या क्या हुआ हंगाम--जुनूँ ये नहीं मालूम..
क्या क्या हुआ हंगाम--जुनूँ ये नहीं मालूम..
क्या क्या....
हुआ...हुआ ..........
हंगाम--जुनूँ ....
ये नहीं मालूम.........
क्या क्या हुआ हंगाम--जुनूँ ये नहीं मालूम..
कुछ होश जो आया तो गरीबाँ नहीं देखा..
कुछ होश जो आया तो गरीबाँ नहीं देखा..
जाहिदने मेरा हौसले-इमाँ नहीं देखा..रुखपर तेरी ज़ुल्फों को परेशाँ नहीं देखा..

क्या ..क्या... हुआ........
क्या क्या हुआ ...हंगाम--जुनूँ... ये नहीं मालूम..
कुछ होश जो आया तो गरीबाँ नहीं देखा ..

- अस्घर गोंडवी

Sung By - Abida Parveen
आबिदा परवीन यांनी गायलेले
Lyrics By - Asghar Gondavi
अस्घर गोंडवी यांनी लिहिलेले

वरील गानप्रकार हा सुफी प्रकारचा आहे.
हे Raqs-E-Bismil (आश्र-ए-बिस्मिल) या अल्बम मधील आहे.
अबिदा परवीनच्या Sad Gazal पठडीमध्ये याची गणना होते.
आपल्याला काही शब्द जाणून घ्यायचे असतील,तर commet मध्ये तो शब्द लिहा.

Sunday, September 20, 2009

अभी से कैसे कहूँ तुमको बेवफा साहब...
अभी से कैसे कहूँ तुमको बेवफा साहब...

अभी तो अपने सफ़र की है इब्तदा साहब..

जाने कितने लकब दे रहा है दिल तुमको..
जाने कितने लकब दे रहा है दिल तुमको..
हुजुर जाने वफ़ा और हम नवाँ साहब..
हुजुर जाने वफ़ा और हम नवाँ साहब..

तुम्हारे याद में तारे शुमार करती हूँ
तुम्हारे याद में तारे शुमार करती हूँ
जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब..
जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब..

तुम्हारा चेहरा मेरे अख्स से उबरता है
तुम्हारा चेहरा मेरे अख्स से उबरता है
जाने कौन बदलता है आयना साहब..

अभी तो अपने सफ़र की है इब्तदा साहब..
अभी से कैसे कहूँ तुमको बेवफा साहब..

- इंदिरा वर्मा

Sung By - Rekha Bhardwaj
Music By - Sudeep Banerjee


Monday, September 14, 2009

इश्क का राज


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इश्क का राज, अगर न खुल जाता
इश्क का राज, अगर न खुल जाता
इस कदर, तू न हमसे शरमाता
इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....

इश्क का राज, अगर न खुल जाता..इश्क का राज, अगर न खुल जाता
इस कदर, तू न हमसे शरमाता....इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....

इश्क का राज, अगर न खुल जाता..

आके तब बैठता है वो, हम पास
आके तब बैठता है वो. हम पास
आफमे जब हमे, नहीं पाता
आफमे जब हमे, नहीं पाता

इस कदर, तू न हमसे शरमाता....इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....
इश्क का राज, अगर न खुल जाता..इश्क का राज, अगर न खुल जाता

जिन्दगीने वफ़ा न की, वरना
जिन्दगीने वफ़ा न की, वरना
में तमाशा वफ़ा दिखलाता
में तमाशा वफ़ा दिखलाता

इस कदर, तू न हमसे शरमाता....इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....
इश्क का राज, अगर न खुल जाता..इश्क का राज, अगर न खुल जाता

सब ये बाते है, चाहत की वरना
सब ये बाते है, चाहत की वरना
इस कदर, तू न हमपे झुन्जलाता
इस कदर, तू न हमपे झुन्जलाता

इस कदर, तू न हमसे शरमाता....इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....
इश्क का राज, अगर न खुल जाता..इश्क का राज, अगर न खुल जाता

में न सुनता, किसीकी बात हस्सन
में न सुनता, किसीकी बात हस्सन
दिल जो, बाते न मुझको सुनवाता
दिल जो, बाते न मुझको सुनवाता

इस कदर, तू न हमसे शरमाता....इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....
इश्क का राज, अगर न खुल जाता..इश्क का राज, अगर न खुल जाता

इस कदर, तू न हमसे शरमाता....
इस कदर, तू न हमसे शरमाता.....
इश्क का राज, अगर न खुल जाता..इश्क का राज, अगर न खुल जाता


- मीर हस्सन



मराठीत रुपांत

प्रेमाच गुपित जर न कळलं असतं, या रितीने तू न माझ्याशी लाजला असतास

येऊन तेव्हा बसलास तू, माझ्यापाशी, संकटात जेव्हा मला नाही पकलडल..?
या रितीने तू न माझ्याशी लाजला असतास,
प्रेमाच गुपित जर न कळलं असतं....

आयुष्याने न्याय नाही केला, नाहीतर, मी न्यायाचा तमाशा दाखवला असता
या रितीने तू न माझ्याशी लाजला असतास,
प्रेमाच गुपित जर न कळलं असतं....

सर्व या गोष्टी आहेत, इच्छेच्या(प्रेमाच्याच)! नाहीतर, या रितीने, तू न माझ्यावर वैतागला असता
या रितीने तू न माझ्याशी लाजला असतास,
प्रेमाच गुपित जर न कळलं असतं....

मी नाही ऐकत, कोणाचीच गोष्ट हसन, हृदय हे, गोष्टी न ऐकवत असता
या रितीने तू न माझ्याशी लाजला असतास,
प्रेमाच गुपित जर न कळलं असतं....

- मीर हस्सन


Sources-
Gazal Written By : Mir Hassan
Gazal Sung By : Abida Parveen
Video Embedded From : Youtube.com
Hindi Structured From : Google.com/transliterate/indic/Hindi
Marathi Structured From : Google.com/transliterate/indic/Marathi
Urdu Words Derived In Marathi Words From : A Book called "आईना-ए-ग़ज़ल"
Published By : Blogger.com
All These Sources Presented By : yog


Saturday, September 12, 2009

जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर
जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर
जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर
चला गया, मुझे कितनी जुदाईया देकर..

जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर

चलो के हर्फे-तम्मना उसीके नाम करे
चलो के हर्फे-तम्मना उसीके नाम करे
के जिसने कैद किया है, रिहाईया देकर...

जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर

मगर वहा तो वही खामोशी का पहरा था
मगर वहा तो वही खामोशी का पहरा था
में गया तेरे घरसे, दुहाईया देकर.....

जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर

अजीब शख्स के वो, मुझसे बदगुमा ही रहा
अजीब शख्स के वो, मुझसे बदगुमा ही रहा
के जिसको पाया था मैंने, खुदाईया देकर

जरा सी बात पे वो, जग हसयिया देकर

हूँ कितना साधा समजता था, बच रहूँगा सफीर
हूँ कितना साधा समजता था, बच रहूँगा सफीर
ख्याल यार को शोला, नवाईया देकर..

जरा सी बात पे वो जग हसयिया देकर
चला गया मुझे कितनी जुदाईया देकर

जरा सी बात पे वो जग हसयिया देकर..

- फैज़ अहमद फैज़

हसयिया- आनंद, उल्हास, उत्साह
जुदाईया- वियोग, विरह
हर्फे-तम्मना- अनिच्छा, इच्छेशिवाय, इच्छा नसताना
रिहाईया- मुक्तता
खामोशी- शांतता, अबोला
पहरा- पहारा, देखरेख
दुहाईया- तक्रारी
अजीब- विचित्र
शख्स- व्यक्ती
बदगुमा- गैरसमज, संशयाने
खुदाईया- संसार, जग
सफीर- पत्रवाहक, संदेश पोचवणारा
ख्याल यार- सखा, सहविचारी, कल्पित मित्र
शोला- जळजळीत,अग्निदाहक
नवाईया- कटू शब्द, कठोर बोलणे



Sources-
Gazal Written By : Faiz Ahmad Faiz
Gazal Sung By : Abida Parveen
Audio Link By : Raaga.com
Video Embedded From : Youtube.com
Picture By : Deviantart.com
Hindi Structured From : Google.com/transliterate/indic/Hindi
Marathi Structured From : Google.com/transliterate/indic/Marathi
Urdu Words Derived In Marathi Words From : A Book called "आईना-ए-ग़ज़ल"
Published By : Blogger.com
All These Sources Presented By : yog



मराठी रुपांतर

जराशा गोष्टीवर तो, जगभरचा आनंद देऊन.. चालला गेला, मला किती विरह देऊन... चला की इच्छेशिवाय त्याच्या नावावर सर्व करावे की ज्याने कैद केले आहे, मुक्तता देऊन.. पण तिथे तर तसाच शांततेचा (अबोलाचा) पहारा होता.. मी येऊन गेलो तुझ्या घरावरून, बोल देऊन.. विचित्र व्यक्तीचे तर, माझ्याशी गैरसमजच राहिले.. की ज्याला मिळवलं होत मी, संसार देऊन.. हुम्म.. किती साधे समजत होतो, वाचून राहील प्रेषक कल्पित मित्राला तिखट कटू शब्द देऊन..

Thursday, September 10, 2009

गए दिनों का सुराग लेकर
गए दिनों का सुराग लेकर, किधर से आया किधर गया वो..
गए दिनों का सुराग लेकर, किधर से आया किधर गया वो..
अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो..

गए दिनों का सुराग लेकर, किधर से आया किधर गया वो..

बस एक मोती सी छब दिखाकर ..
बस एक मोती सी छब दिखाकर..बस एक मीठी सी धुन सुनाकर
सितारा-ए-शाम बनके आया, बरअंगे ख्वाबे सहर गया वो..

अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो..
गए दिनों का सुराग लेकर..

न अब वो यादोंका चढ़ता दरया
न अब वो यादोंका चढ़ता दरया ..न फुर्सतोंकी उदास बरखा..
यूँही जरासी कसक है दिल में...यूँही जरासी कसक है दिल में
जो जख्म गहरा था भर गया वो..

अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो..
गए दिनों का सुराग लेकर..

वो हिज्र की रात का सितारा..
वो हिज्र की रात का सितारा, वो हमनफस हमसुखन हमारा
सदा रहे उसका नाम प्यारा..सदा..... रहे उसका नाम प्यारा .....
सुना है कल रात मर गया वो.......

अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो..
गए दिनों का सुराग लेकर..

वो रात का बेनवा मुसाफिर..
वो रात का बेनवा मुसाफिर..
वो तेरा शाइर वो तेरा नासिर
तेरी गली तक तो हमने देखा था फिर न जाने किधर गया वो....

अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो..
गए दिनों का सुराग लेकर.. किधर से आया किधर गया वो..
गए दिनों का सुराग लेकर..

नासिर

सुराग- चिन्हे
अजीब- विचित्र
मानूस- परिचित
बरअंगे ख्वाबे- स्वप्नील
सहर- प्रभात, पहाट, सकाळ
दरया- प्रवाह, नदी
बरखा- विरक्त, खिन्न, उदास
कसक- संभ्रम
हिज्र- विरह, वियोग
हमनफस- मित्र, सखा
हमसुखन- एकत्र बोलणारे, काव्य करणारे
बेनवा- कंगाल
शाइर- कवी
नासिर- सदोपदेशक, लीन, विनयशील



मराठी रुपांतर


गेल्या दिवसांच्या खुणा घेऊन, कुठून आला कुठे गेला तो..
विचित्र परिचित पण अनोळखी होता, मला तर हैराण करून गेला तो..

बस एक मौतिक (मोतीसारखी) छबी दाखवून..
बस एक मौतिक (मोतीसारखी) छबी दाखवून..बस एक गोड (सुरेल) धून ऐकवून
सायंतारा बनून आला, स्वप्नील पहाट बनून गेला तो....

ना आता तो आठवणींचा चढता दर्या
ना सवडीची उदास चर्या...
अशीच जराशी सल आहे हृदयात..अशीच जराशी सल आहे हृदयात
जो घाव खोल होता, भरून गेला तो..

तो वियोगाच्या रात्रीचा तारा...
तो वियोगाच्या रात्रीचा तारा, तो सखा काव्यमित्र आपला
सदा राहो त्याचं नाव प्रिय ... सदा ...राहो त्याचं नाव प्रिय
ऐकले आहे, काल रात्री मरून गेला तो...

तो रात्रीचा कंगाल मुसाफिर...
तो रात्रीचा कंगाल मुसाफिर...
तो तुझा कवी तो तुझा चाहता
तुझ्या गल्ली पर्यंत तर आपण पाहिले होते परत काय माहित कुठे गेला तो...

गेल्या दिवसांच्या खुणा घेऊन, कुठून आला कुठे गेला तो..
विचित्र परिचित पण अनोळखी होता, मला तर हैराण करून गेला तो....

नासिर