Friday, June 18, 2010

मैं नज़र से पी रहा हूँ, ये समां बदल न जाए
न उठाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाए


अभी रात कुछ है बाकि, न उठा नकाब साकी
तेरा रिंद गिरते गिरते, कहीं फिर संभल न जाए

मेरे जिंदगी के मालिक, मेरे दिल पे हाथ रख दे
तेरे आने के ख़ुशी में, मेरा दम निकल न जाए


मेरे अश्क भी है इस में, जो शराब बन रही है
मेरा जाम छूने वाले, तेरा हाथ जल न जाए

मैं बना करू नशेमन किसी शाख-ए-गुल्सिता पे
कहीं साथ आशियाँ के, ये चमन भी जल न जाए

No comments:

Post a Comment