वो अजीब शख्स था भीड़ मैं जो नज़र मैं ऐसे उतर गया
जिसे देख कर मेरे होंट पर मेरा अपना शेर ठहर गया
कई शेर उस की निगाह से मेरे रुख पे आ के ग़ज़ल बने
वो निराला तर्ज़ -ए -पयाम था जो सुखन की हद से गुज़र गया
वो हर एक लफ्ज़ मैं चाँद था वो हर एक हर्फ़ मैं नूर था
वो चमकते मिसरों का अक्स था जो ग़ज़ल में खुद ही संवर गया
जो लिखूं तो नोक -ए -कलम पे वो , जो पढ़ूं तो नोक -ए -जुबां पे वो
मेरा जौक भी मेरा शौक भी मेरे साथ साथ निखर गया
मत्ले से मक्ते तक बेहतरीन ग़ज़ल.
ReplyDeleteहर शेर उम्दा.
dhanywad..
ReplyDelete