Sunday, February 20, 2011

अतहर नफीस

ना उड़ा यूँ ठोकरों से मेरी खाक-ए-कब्र जालिम
यही एक रह गयी है मेरे प्यार की निशानी

तुझे पहली ही कहा था हैं जहाँ सराह-ए-फ़ानी
दिल-ए-बदनसीब तुने मेरी बात ही न मानी

सोचते और जागते साँसों का एक दरिया हूँ मैं
अपने गुमगश्ता किनारों के लिए बहता हूँ मैं


कभी कहाँ ना किसी से तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गई ज़माने को

सुना है गैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा दूँ गरीब खाने को

जल गया सारा बदन इन मौसमों की आग में
एक मौसम रूह का हैं जिसमें अब ज़िंदा हूँ मैं

मेरे होंठो का तबस्सुम दे गया धोखा तुझे
तुने मुझको बाग जाना देख ले सेहरा हूँ मैं

देखिए मेरी पजीराई को अब आता है कौन
लम्हा भर को वक़्त की दहलीज़ पर आया हूँ मैं


इसका रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बरबाद
इस का गम है के बहोत देर में बरबाद किया

मुझ को तो होश नहीं तुमको खबर हो शायद
लोग कहते के तुम ने मुझे बरबाद किया 

- अतहर नफीस

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