दिन में कब सोचा करते थे सोंएँ गए हम रात कहाँ
अब ऐसे आवारा घूमें अपने वो हालात कहाँ
कब थे तेज़-रवी पर नादान अब मंजिल पर तनहा हैं
सोच रहे हैं इन हाथों से छूता था वो हाथ कहाँ
क्या तुम ने उनको देखा है क्या उनसे बातें की हैं
तुमको क्या समझाएँ यारो खाई हम ने मात कहाँ
बरसो बाद मिले हम उनसे दोनों थे शर्मिंदा से
दोनों ने चाहा भी लेकिन फिर आती वो बात कहाँ
SUBHAN ALLAH...AUR KAYA KAHEN
ReplyDeleteNEERAJ
Thanks for such comment..
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