Tuesday, February 21, 2012

दिन में


दिन में कब सोचा करते थे सोंएँ गए हम रात कहाँ
अब ऐसे आवारा घूमें अपने वो हालात कहाँ


    कब थे तेज़-रवी पर नादान अब मंजिल पर तनहा हैं
    सोच रहे हैं इन हाथों से छूता था वो हाथ कहाँ 

 

 क्या तुम ने उनको देखा है क्या उनसे बातें की हैं      
तुमको क्या समझाएँ यारो खाई हम ने मात कहाँ      


बरसो बाद मिले हम उनसे दोनों थे शर्मिंदा से
दोनों ने चाहा भी लेकिन फिर आती वो बात कहाँ 


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