Sunday, November 15, 2009

मेरे हमनफस मेरे हम नवाँ


 मेरे हमनफस मेरे हम नवाँ मुझे दोस्त बनके दगा न दे
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जान वलब, मुझे जिंदगी की दुआ न दे


मेरे दाग-ए-दिल से है रोशनी, उसी रोशनी से है जिंदगी
मुझे डर है अए चारागर, ये चराग तू ही बुझा न दे


कभी जाम लब पे लगा दिया कभी मुस्कुराके हटा दिया
तेरे छेड़-छाड़ में साथिया, मेरी तशनगी को बढ़ा न दे



मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर
ये तेरी नवाजिश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे


मेरा अज़्म इतना बलंद है के पराये शोलों का डर नहीं
मुझे खौफ आतिशे गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे


वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुब्बू, अरे ओ 'शकील'  कहाँ है तू
तेरा जाम लेने को बज्म में कोई और हाथ बढ़ा न दे




-'शकील'

2 comments:

  1. जब हुआ जि़क्र जमाने मे मुहब्बत का "शकील"
    मुझको अपने दिले नाकाम पे रोना आया

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