Sunday, November 22, 2009

नजीर अकबराबादी

जब फागुन रंग झमकते हो
तब देख बहारें होली की.. तब देख बहारें होली की...
जब फागुन रंग झमकते....
परियों के रंग दमकते हो
खुम शीशे जाम छलकते हो
मेहबूब नशे में छकते हो
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...

नाच रंगीली परियोंका
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़के रंग भरें
कुछ घूंगरुं ताल छनकते हो
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...

मुलाल गुलाबी आँखें हो
और हाथों में पिचकारी हो.....
उस रंग भरी पिचकारी को
अंगिया पर तककर मारीं हो
सीनों से रंग ढलकते हो
तब देख बहारें होली की..   
जब फागुन रंग झमकते हो.. जब फागुन रंग झमकते हो...


-नजीर अकबराबादी

4 comments:

  1. धन्यवाद मनोज कुमारजी

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  2. ना डारो रंग मोपे ..

    क्या बात है. बढीया.

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  3. HAREKRISHNAJI
    आपको भी मनपूर्वक धन्यवाद..

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