Tuesday, January 5, 2010

आँखों को इंतज़ार का

आँखों को इंतज़ार का, दे के हुनर चला गया
चाहा था एक शख्स को, जाने किधर चला गया

दिनकी वो महफिलें गयी, रातों के रत जगें गए
कोई समेट कर मेरे, शामो सहर चला गया

झोंका है एक बहार का, रंग-ए-ख्याल-ए-यार भी
हरसू बिखर बिखर गयी खुशबू, जिधर चला गया

उसके ही दम से दिल में आज, धुप भी चांदनी भी है
दे के वो अपनी याद के, शम्सो क़मर चला गया

कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर, कब से भटक रहा है दिल
हमको भुला के राह वो, अपनी डगर चला गया


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