Friday, April 20, 2012

टूटे हुए..

टूटे हुए ख़्वाबों के लिए आँख ये तर्र क्यूँ
सोचो तो सही शाम है अंजामे सहर क्यूँ

जो ताज सजाए हुए फिरता हूँ अनाकर 
हालात के कदमों पे झुकेगा वहीँ सर क्यूँ

सिलते ही तो सिल जाए किसी ए फ़िक्र लबोंकी  
खुश रंग अंधेरों को कहूँगा मैं सहर क्यूँ
   
सोचा किया मैं हिज्र की दहलीज पे बैठा
सदियों में उतर जाता हैं लम्हों का सफ़र क्यूँ

हरजाई ए शहजाद ये तसलीन पछाना
सोचा भी कभी तुमने हुआ ऐसा मगर क्यूँ

Tuesday, April 10, 2012

उसने जब  मुझसे किया एहदे वफ़ा आहिस्ता

दिल की वीराने में एक फुल खिला आहिस्ता