Saturday, September 18, 2010

किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...


वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..


दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..


जुल्म यह है के है यकता तेरी बेगानारवी
लुफ़्त यह है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ...
 
 
 
 Video _ http://www.youtube.com/watch?v=TSJlQWhC-dc&feature=player_embedded#!