Thursday, April 28, 2011

जिंदगी से...

जिंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहोत देर से मिला है मुझे

हमसफ़र चाहिए हुजूम नहीं
एक मुसाफिर भी काफ़िला है मुझे

दिल धडकता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाइश थी आबला है मुझे

लब कुषा हूँ तो इस यकीन के साथ
क़त्ल होने का हौसला है मुझे

कौन जाने के चाहतो में 'फ़राज़'
क्या गवायाँ क्या मिला है मुझे

- अहमद फ़राज़

Tuesday, April 26, 2011

नजर मिला के मेरे पास आ के लूट लिया
नजर हटी थी के फिर मुस्कुरा के लूट लिया

दुहाई है मेरे अलाह की दुहाई है 
किसी ने मुझ से मुझी को छुपा के लूट लिया

सलाम उस पे के जिस ने उठा के पर्दा-ए-दिल
मुझी में रह के मुझी में समां के लूट लिया

यहाँ तो खुद तेरी हस्ती है इश्क को दरकार
वो और होंगे जिन्हें मुस्कुरा के लूट लिया

निगाह डाल दी जिस पर हसीं आँखों ने
उसे भी हुस्न-ए-मुजस्सम बना के लूट लिया
  

- जिगर मुरादाबादी

Thursday, April 21, 2011

फिर....

फिर  उसी  राह  गुज़र  कर  शायद
हम  कभी  मिल  सकें  मगर  शायद

जान  पहचान  से  क्या  होगा
फिर  भी  ऐ  दोस्त  गौर  कर  शायद

मुन्तजिर  जिनके  हम  रहे  उनको
मिल  गए  और  हम  सफ़र  शायद

जो  भी  बिछड़े  हैं  कब  मिले  हैं  'फ़राज़'
फिर  भी  तू  इंतज़ार  कर  शायद

- अहमद  फ़राज़

Tuesday, April 19, 2011

यार आए न आए...

खुदा ही जाने यार आए न आए
मेरे दिल को करार आए न आए

जवानी में अगर तोबा भी कर ले
किसी को इतबार आए न आए

वो आए भी तो अब शिद्दत-ए-दर्द
खुदा जाने करार आए न आ

इबादत तो है पीरी में भी मुमकिन
जवानी बार बार आए न आए

Wednesday, April 6, 2011

तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम के 'तू क्या है'
तुम ही कहो के यह अंदाजे-गुफ्तगू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख़ जुस्तजू क्या है

न शोलें में यह करिश्मा न बर्क में ये अदा
कोई बताओ के वोह शोखे -तुन्द खू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

रही न ताक़ते-गुफ्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

वोह चीज़ जिसके लिए हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बाड़े -गुल फामे-मुश्कबू  क्या  है

यह रश्क है के वो होता है हम सुखन तुमसे
वगरना खौफे-बाद आमोज़ी-ए-अदू क्या है

हुआ है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगरना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है

-ग़ालिब