Thursday, February 23, 2012

इक लफ्ज़े मोहब्बत

इक लफ्ज़े मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिले आशिक़ फैले तो ज़माना  है

आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे है
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है

यह इश्क नहीं आसान इतना ही समझ लीजिए
इक आग का दरिया और डूब के जाना है

दिल संगे मलामत का हर चंद निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है दिल ही तो ज़माना है

आंसू तो बहोत से हैं आँखों में जिगर लेकिन
बिंध जाये तो मोती है रह जाये तो दाना है

- जिगर मुरादाबादी
 

Tuesday, February 21, 2012

दिन में


दिन में कब सोचा करते थे सोंएँ गए हम रात कहाँ
अब ऐसे आवारा घूमें अपने वो हालात कहाँ


    कब थे तेज़-रवी पर नादान अब मंजिल पर तनहा हैं
    सोच रहे हैं इन हाथों से छूता था वो हाथ कहाँ 

 

 क्या तुम ने उनको देखा है क्या उनसे बातें की हैं      
तुमको क्या समझाएँ यारो खाई हम ने मात कहाँ      


बरसो बाद मिले हम उनसे दोनों थे शर्मिंदा से
दोनों ने चाहा भी लेकिन फिर आती वो बात कहाँ 


Wednesday, February 15, 2012

चाहतें तेरी न समझी जाए
आहटें यूँ खुद ही भरी जाए

गैर जो समझा मुझे आखिर 
मुस्कुराहटें तो बिखरी जाए

सादगी भरे लम्हें बस तेरे
जर्रे जर्रे में से बेबसी जाए

परेशां हर लोग जिंदगी के
रुकने जाए तो जिंदगी जाए