Monday, June 21, 2010

कुछ देर तक......

कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो..........
माना जिंदगी है तनहा सफ़र..... इल्तजा यही है जाने जिगर

मुझको फ़िक्र है आगाज़ की..... देखो ना सपना अंजाम का..... सदियों की बेताबियाँ खत्म हो.... इक पल मिले जो आराम का............

रहता नहीं संग कोई सदा...... जाने वफ़ा है मुझको पता ... दो चार लम्हा रहो तुम रूबरू..... दिल तुमसे कहना यही चाहता ......
कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो................
माना जिंदगी है तनहा सफ़र..... इल्तजा यही है जाने जिगर

कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो..........
साथ चलो..........
कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो....

Friday, June 18, 2010

मैं नज़र से पी रहा हूँ, ये समां बदल न जाए
न उठाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाए


अभी रात कुछ है बाकि, न उठा नकाब साकी
तेरा रिंद गिरते गिरते, कहीं फिर संभल न जाए

मेरे जिंदगी के मालिक, मेरे दिल पे हाथ रख दे
तेरे आने के ख़ुशी में, मेरा दम निकल न जाए


मेरे अश्क भी है इस में, जो शराब बन रही है
मेरा जाम छूने वाले, तेरा हाथ जल न जाए

मैं बना करू नशेमन किसी शाख-ए-गुल्सिता पे
कहीं साथ आशियाँ के, ये चमन भी जल न जाए

Wednesday, June 9, 2010

आहट सी कोई आये तो लगता है की तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है की तुम हो

जब शाख कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लजत जाए तो लगता है की तुम हो

रस्ते के धुंधलके में किसी मोड़ पे कुछ दूर..
इक लव सी चमक जाए तो लगता है की तुम हो

संदल से महकती हुई कुर्बेफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है की तुम हो

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदिया कोई बलखाये तो लगता है की तुम हो

जब रात कोई देर किरन मेरे बराबर
चुपचाप से सो जाए तो लगता है की तुम हो
 

- जान  निसार  अख्तर