Monday, December 6, 2010

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुःख सहते है
हम ने सुना था इस बस्ती में दिलवाले भी रहते है

एक हमे आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनिया वाले दिलवालों को और बहोत कुछ कहते है

बीत गया सावन का महिना मौसम ने नजरे बदले
लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आंसू बहते है

जिन की खातिर शहर भी छोड़ा, जिन के लिए बदनाम हुए
आज वो भी हम से बेगाने बेगाने से रहते है

वो जो अभी इस राहगुजर से चाक ए गिरेबाँ गुजरा था
उस आवारा दीवाने को जालिब जालिब कहते है


-जालिब

Saturday, November 27, 2010

जब से तु ने मुझे दीवाना बना रखा है..

आप गैरोंकी बात करते है..
हमने अपने भी आजमाए है
लोग काँटों से बच के चलते है
हमने फूलों से जख्म खाए है

किस का क्या जो कदमों पर जब इन्हें बंदगी रख दी
हमारी चीज़ थी हमने जानी वहा रख दी
जो दिल माँगा तो वो बोले के ठहरो याद करने दो 
जरा सी चीज़ थी हमने खुदा जाने कहा रख दी

संग हर शख्श ने उठाया रखा है
जब से तु ने मुझे दीवाना बना रखा है

निगाह नाज़ से पूछेंगे किस दिन यह जहीन ...तू ने क्या क्या न बनाया तो ये क्या क्या न बना

उसके दिल पर भी कड़ी इश्क में गुजरी होगी
नाम जिसने भी मुहब्बत का सजा रखा है

आ पिया मोरे नैन में...मैं पलक ढाँक तोहे लूँ... ना मैं देखूं और को और न तोहे देखन दूँ

पत्थरों.. आज मेरे सर पे बरसते क्यूँ हो
दुनिया बड़ी बावरी पत्थर पूजने जाये..घरकी चक्की कोई न पूजे जिसका पिसा खाए
मैंने तुमको भी कभी अपना खुदा रखा है

अब मेरे दीद की दुनिया भी तमाशाई है
तुने क्या मुझके मुहब्बत में बना रखा है

नदी किनारे धुँआ उठे मैं जानू कुछ होय..जिस कारन मैं जोगन बनी कही वो ही न जलता होय..
पि जा अय्याम की कल्बी को भी हसके नासीर
हम को सहने में भी कुदरत ने मजा रखा है
 
जब से तु ने मुझे दीवाना बना रखा है............

Thursday, November 11, 2010

वह सूरतें इलाही किस देस बस्तियाँ है..
अब जिनके देखनेको आँखे तरस्तियाँ है..

बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर
मिजगां की यह घटायें अब तक बरस्तियाँ है..

क्यों कर ना हो यह ज़ख्मी शीशा सा दिल हमारा
उस शौक की निगाहें पत्थर में धस्तियाँ है..

कीमत में उनकी गो हम दो जुग को दे चुके है..
उस यार की निगाहें किस पर भी सस्तियाँ है..

जब मैं कहा यह उसे सौदा को अपने मिलके..
इस साल तू है साकी और मैं परस्तियाँ है..

Monday, October 4, 2010

वो  जो  हम  में  तुम  में  करार  था , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो 
वही  यानी  वादा  निबाह  का , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो 

वो  जो  लुत्फ़  मुझ  पे  थे  पेश्तर , वो  करम  के  हाथ  मेरे  हाल  पर
मुझे  सब  हैं  याद  ज़रा  ज़रा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

वो  नए  गिले  वो  शिकायतें , वो  मज़े  मज़े  की  हिकायतें
वो  हर  एक  बात  पे  रूठना , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो


कोई  बात  ऎसी  अगर  हुई  जो  तुम्हारे  जी  को  बुरी  लगी
तो  बयां  से  पहले  ही  भूलना  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो


सुनो  ज़िक्र  है  कई  साल  का , कोई  वादा  मुझ  से  था  आप  का
वो  निबाहने  का  तो  ज़िक्र  क्या , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

कभी  हममें  तुम  में  भी  चाह  थी , कभी  हम  से  तुम  से  भी  राह  थी
कभी  हम  भी  तुम  भी  थे  आशना , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

हुए  इत्तेफाक  से  गर  बहम , वो  वफ़ा  जताने  को  दम -बा -दम
गिला -ए-मलामत -ए -अर्क़बा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

कभी  बैठे  सब  हैं  जो  रू -ब-रू  तो  इशारतों  ही  से  गुफ्तगू
वो  बयान  शौक़  का  बरमला  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

वो  बिगड़ना  वस्ल  की  रात  का , वो  न  मानना  किसी  बात  का
वो  नहीएँ  नहीं  की  हर  आन  अदा , तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

जिसे  आप  गिनते  थे  आशना  जिसे  आप  कहते  थे  बावफ़ा
मैं  वही  हूँ  "मोमिन "-ए -मुब्तला  तुम्हें  याद  हो  के  न  याद  हो

Saturday, September 18, 2010

किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...


वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..


दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..


जुल्म यह है के है यकता तेरी बेगानारवी
लुफ़्त यह है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ...
 
 
 
 Video _ http://www.youtube.com/watch?v=TSJlQWhC-dc&feature=player_embedded#!

Sunday, August 29, 2010

गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी..

गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी..
                                     गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...
             यह नजराना तेरा भी है और मेरा भी...

अपने गमको गीत बनाकर गा लेना..
अपने गमको गीत बनाकर गा लेना..
राग पुराना तेरा भी है... मेरा भी..
राग पुराना तेरा भी है.. मेरा भी..
गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

                                   तू मुझको और मैं तुझको समझाऊ क्या..
तू मुझको और मैं तुझको समझाऊ क्या..
                                  दिल दीवाना तेरा भी है.. मेरा भी.. 
दिल दीवाना तेरा भी है.. मेरा भी..
              गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

शहर में गलियों-गलियों जिसका चर्चा है..
शहर में गलियों-गलियों जिसका चर्चा है..
वो अफसाना तेरा भी है.. मेरा भी..

                                  मयखाना की बात ना कर वाइज मुझसे..
                                  आना-जाना तेरा भी.. मेरा भी..
                                  गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

यह नजराना तेरा भी है और मेरा भी... 
            गम का खजाना तेरा भी है.. मेरा भी...

Sunday, August 22, 2010

तुझ लब की सिफत, लाल-ऐ-बदक्शासु कहूँगा..
जादू है तेरे नैन, जादू है तेरे नैन गज़लासु कहूँगा..

जलता हूँ शब-ओ-रोज तेरे गम में ऐ साजन..
ऐ सोज तेरा निसाल-ऐ- सोजासु कहूँगा ..

देखा हूँ तुझे ख्वाब में ऐ माया-ऐ-ख़ुबी
इस ख्वाब को जा उसफ-ऐ-तहनासु कहूँगा..

मुझ पर ना करो जुल्म तुम ऐ लैल-ऐ-खूबा
मजनू हूँ तेरे गम को बयाबासु कहूँगा..

एकनुक्ता तेरे सफा-ऐ-रुख पर नहीं बेजां
इस मुख को सफा-ऐ-ख़ुरासु कहूँगा..

http://www.youtube.com/watch?v=OrrjQi0uS0o

Sunday, July 25, 2010

तुम्हें दिललगी भूल जानी पड़ेगी.....मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो

तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे.. कभी दिल किसी से लगा कर तो देखो
होठों के पास आये हसीं क्या मजाल है..दिल का मुहमल्ला है कोई दिललगी नहीं
जख्म पे जख्म खा के ज़ी अपने लहू के घुट प़ी.. आह ना कर लबों को स़ी..इश्क है दिललगी नहीं

दिल लगाकर पता चलेगा तुम्हें ...आशकी की दिललगी नहीं होती..

 कुछ खेल नहीं है इश्क की लाग....पानी न समझ है आग है आग
खूँ रुलाएगी यह लगी दिलकी..खेल समझो न दिललगी दिलकी
यह इश्क नहीं आसाँ.. बस इतना समझ लीजिये..इक आग का दरया है..और डूब के जाना है

तुम्हें दिललगी भूल जानी पड़ेगी.....मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो..तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे..
तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे..कभी दिल किसी से लगा कर तो देखो

Saturday, July 17, 2010

मेरे दिल में तेरी यादों के साए
हवा जैसे खंडहर में सरसराए

हम ही ने सब के गम को अपना जाना
हम ही ने सब के हाथों जख्म पाए

दिल-ए-बेताब की उस्तअद तो देखो
ज़माने भर के इसमें गम समाए

किसीने प्यार से जब भी पुकारा
तो पलकों पर सितारे झिलमिलाए

शब्-ए-फ़ुर्कत हविक आहट पे मुझको
यही धोखा हुआ शायद वो आए

ख़ुशी दी है ज़माने भर को इमदाद
अगरचे उम्रभर आँसू बहाए


http://www.youtube.com/watch?v=TcDqUQzp0xs&feature

Tuesday, July 6, 2010

..आँधी चली ...

जब तक बिका न था....
जब तक बिका न था.. तो कोई पूछता न था
जब तक बिका न था तो कोई पूछता न था
तुने मुझे खरीद कर... अनमोल कर दिया

आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला
आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला
दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला
आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला
दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला...............

हम अंजुमन में सब की तरफ देखते रहे
हम अंजुमन में सब की तरफ देखते रहे
हम अंजुमन में सब की तरफ देखते रहे....अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला
अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला........

दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला...........

जो मैं ऐसा जानती.......
जो मैं ऐसा जानती प्रीत की दुख होय
नगर ढंढोरा पिटती.....
नगर ढंढोरा पिटती प्रीत न करियो कोय

आवाज को तो कौन समझता की दूर दूर
आवाज को तो कौन... समझता की दूर दूर.......
खामोशियों का दर्द शनासा नहीं मिला
................खामोशियों का दर्द शनासा नहीं मिला...

दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला.................

कच्चे घड़े ने जीत ली....जीत ली.......
कच्चे ...कच्चे..कच्चे...कच्चे घड़े ने जीत ली
कच्चे घड़े ने जीत ली नदी चढ़ी हुई...
मजबूत कश्तियों को किनारा नहीं मिला..
मजबूत कश्तियों को किनारा नहीं मिला....

दिल जिससे मिल गया वो दुबारा नहीं मिला...आँधी चली तो नक़्शे-कफ़-ए-पा नहीं मिला.............

  ..आँधी चली ...


Source :- http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com

Sunday, July 4, 2010

नसीर

                                                  तर्के-तअल्लुकात पे रोया ना तू न मैं
                                               लेकिन यह क्या के चैन से सोया ना तू न मैं

वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी                                             
  के धुप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी                                                    


                                                कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीं रहे 
                                                      जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे


अदावतें थी तगाफुल था रंजिशें थी मगर                                                 
बिछड़ने वाले में सब कुछ था बेवफाई न थी                                             



बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल                                           
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी                                             

                                                  काजल दारू किरकिरा सुरमा सहा न जाये 
                                                 जिन नैन में पी बसे दूजा कोन न समाये
किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन                                                      
सदा तो आयी थी लेकिन कोई दुहाई न थी                                                 



  कभी यह हाल के दोनों में यकदिली थी नसीर                                        
कभी यह मर्हल्ला जैसे के आशनाई न थी                                              




- नसीर

Source :- http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com

Monday, June 21, 2010

कुछ देर तक......

कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो..........
माना जिंदगी है तनहा सफ़र..... इल्तजा यही है जाने जिगर

मुझको फ़िक्र है आगाज़ की..... देखो ना सपना अंजाम का..... सदियों की बेताबियाँ खत्म हो.... इक पल मिले जो आराम का............

रहता नहीं संग कोई सदा...... जाने वफ़ा है मुझको पता ... दो चार लम्हा रहो तुम रूबरू..... दिल तुमसे कहना यही चाहता ......
कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो................
माना जिंदगी है तनहा सफ़र..... इल्तजा यही है जाने जिगर

कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो..........
साथ चलो..........
कुछ देर तक...... कुछ दूर तक.......... तो साथ चलो....

Friday, June 18, 2010

मैं नज़र से पी रहा हूँ, ये समां बदल न जाए
न उठाओ तुम निगाहें, कहीं रात ढल न जाए


अभी रात कुछ है बाकि, न उठा नकाब साकी
तेरा रिंद गिरते गिरते, कहीं फिर संभल न जाए

मेरे जिंदगी के मालिक, मेरे दिल पे हाथ रख दे
तेरे आने के ख़ुशी में, मेरा दम निकल न जाए


मेरे अश्क भी है इस में, जो शराब बन रही है
मेरा जाम छूने वाले, तेरा हाथ जल न जाए

मैं बना करू नशेमन किसी शाख-ए-गुल्सिता पे
कहीं साथ आशियाँ के, ये चमन भी जल न जाए

Wednesday, June 9, 2010

आहट सी कोई आये तो लगता है की तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है की तुम हो

जब शाख कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लजत जाए तो लगता है की तुम हो

रस्ते के धुंधलके में किसी मोड़ पे कुछ दूर..
इक लव सी चमक जाए तो लगता है की तुम हो

संदल से महकती हुई कुर्बेफ़ हवा का
झोंका कोई टकराए तो लगता है की तुम हो

ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदिया कोई बलखाये तो लगता है की तुम हो

जब रात कोई देर किरन मेरे बराबर
चुपचाप से सो जाए तो लगता है की तुम हो
 

- जान  निसार  अख्तर


Friday, May 7, 2010

क्या टूटा है.... अन्दर अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालो, कौन तुम्हे याद आया है...........
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
चुपके चुपके सुलगे रहे थे, याद में उनकी दीवाने..
एकतारे में टूट के यारो......
एकतारे में टूट के यारो....क्या उनके समझाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

रंगबरंगी इस महफ़िल में...
रंगबरंगी इस महफ़िल में, तुम क्यों इतने चुपचुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो....
भूल भी जाओ पागल लोगो.... क्या खोया क्या पाया है.....
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

शेर कहा है खून है दिल का ....
शेर कहा है खून है दिल का, जो लफ्जों में बिखरा है
शेर कहा है खून है दिल का......जो लफ्जों में बिखरा है..
दिल के जख्म दिखा कर हमने
दिल के जख्म दिखा कर हमने..महफ़िल को गरमाया है..............
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है

अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो
अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो... वो इतना बेदर्द नहीं
अब 'शहजाद' ये झूट ना बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो..
अपनी चाहत को भी परखो, गर इम्जाम लगाया है
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तनहा तनहा रोने वालो ....
 तनहा तनहा रोने वालो, कौन तुम्हे याद आया है...
क्या टूटा है अन्दर अन्दर...क्यों चेहरा कुम्हलाया है


- शहजाद

Sunday, April 18, 2010

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तशना-ए-फ़रियाद आया

दम लिया था न क़यामत ने हनोज
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

जिंदगी यूँ भी गुजर ही जाती
क्यों तेरा राहगुजर याद आया

कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया

हमने मजनू पे लड़कपन में असद
संग उठाया था के सर याद आया

- 'असद' ग़ालिब

Sunday, March 28, 2010

जिंदगी में तो सभी..

जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है
मैं तो मर कर भी मेरी जाँ तुझे चाहूँगा

तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहबत के लिए थोड़ी है 
एक जरासा गम-ए-दौरा का भी हक है जिस पर
मैंने वो साँस भी तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझपे हो जाऊ कुर्बान, तुझे चाहूँगा  
मैं तो मर कर मेरी जाँ तुझे चाहूँगा
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है

अपने जज्बात नगमात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बनके निगहबान तुझे चाहूँगा 
मैं तो मर कर मेरी जाँ तुझे चाहूँगा
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है

तेरी हर चाप से जलते हैं ख्यालों में चिराग
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूं तो फिर ऐ जाँ ए तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबु आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा 

मैं तो मर कर मेरी जाँ तुझे चाहूँगा
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते है

Sunday, March 7, 2010



कोई दोस्त है ना रकीब है
तेरा शहर कितना अजीब है

वो जो इश्क था वो जूनून था
ये जो हिज्र है ये नसीब है

यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूँ
यहाँ कौन इतना करीब है


मैं किसे कहूँ मेरे साथ चल
यहाँ सबके सर पे सलीब है

तुझे देखकर मैं हूँ सोचता
तू हबीब है या रकीब है

- राना साहरी  

Friday, March 5, 2010

तेरे आने का धोखा सा रहा है
दिया सा रात भर जलता रहा है

अजब है रात से आँखों का आलम
ये दरिया रात भर चढ़ता रहा है

सुना है रात भर बरसा है बादल
मगर वो शहर जो प्यासा रहा है

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है

किसे ढून्दोगे इन गलियों में 'नासिर'
चलो अब घर चले दिन जा रहा है

- नासिर

Sunday, February 28, 2010

प्यार भरे दो शर्मीले नैन... जिनसे मिला मेरे दिल को चैन
कोई जाने ना... क्यूँ मुझसे शरमाए... कैसे मुझे तडपाए...

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...

दिल ये कहे गीत मैं तेरे गाऊ.. तू ही सुने और मैं गाता जाऊ..
तू जो रहे साथ मेरे ..दुनिया को ठुकराऊ.. तेरा दिल बहलाऊ..

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...

रूप तेरा कलियों को शरमाए.. कैसे कोई अपने दिल को बचाए..
पास है तू ..फिर भी जलूँ कौन तुझे समझाए..सावन बीता जाए..

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...

डर है मुझे तुझसे बिछड़ ना जाऊ..खो के तुझे मिलने की राह न पाऊ..
ऐसा ना हो ..जब भी तेरा ...नाम लबों पर लाऊ.. मैं आंसू बन जाऊ.. 

प्यार भरे दो शर्मीले नैन...जिनसे मिला मेरे दिल को चैन
कोई जाने ना... क्यूँ मुझसे शरमाए... कैसे मुझे तडपाए...


प्यार भरे दो शर्मीले नैन...


Thursday, February 11, 2010

जब तेरे दर्द में..
दिल दुखता था...
हम तेरे हक़ में दुआ करते थे
हम भी चुपचाप पिया करते थे

जब तेरे दर्द में..
जिया करते थे
जब तेरे दर्द में..
जिया करते थे





Sunday, January 31, 2010

आबिदा परवीन

रंग बातें करें और बातों से खुशबू आए
दर्द फूलों की तरह महके अगर तू आए

भीग जाती है इस उमीद पे आँखें हर शाम
शायद से रात हो महताब लबेजू आए

हम तेरी याद से कतरा के गुजर जाते मगर
राह में फूलों के लब सायों के गेसू आए

आजमाए इश्क की घडी से गुजर आए तो जिया
जशन-ए-गमदारी हुआ आँख में आंसू आए


Tuesday, January 26, 2010

ग़ालिब

रहिये  अब  ऐसी  जगह  चलकर  जहाँ  कोई  न  हो 
हमसुखन  कोई  न  हो  और  हमज़बाँ  कोई  न  हो 

बेदार -ओ -दीवार  सा  इक  घर  बनाया  चाहिए 
कोई  हमसाया  न  हो  और  पासबाँ  कोई  न  हो 

पड़िए  गर  बीमार  तो  कोई  न  हो  तीमार -दार 
और  अगर  मर  जाइए  तो , नौहा -ख्वाँ  कोई  न  हो 

- ग़ालिब

Saturday, January 9, 2010

एक बस तू ही नहीं मुझसे खफ़ा हो बैठा


एक बस तू ही नहीं मुझसे खफ़ा हो बैठा
मैंने जो संग तराशा वो खुदा हो बैठा

उठ के मंजिल ही अगर आये तो शायद कुछ हो
शौक-ए-मंजिल तो मेरा आबलापा हो बैठा

मस्लहत छीन गयी कुवत-ए-गुफ्तार मगर
कुछ न कहना ही मेरा मेरी सदा हो बैठा

शुक्रिया ऐ मेरे कातिल ऐ मसीहा मेरे
जहर जो तुने दिया था वो दवा हो बैठा

जाने 'शहजाद' को मिनजुम्ला ए आदा पा कर
हुक वो उठी के जी तन से जुदा हो बैठा



- फरहत शहजाद


मराठी अनुरूप 


एक फक्त तूच नाही माझ्याशी नाराज होऊन बसला
मी जो दगड कोरला तो देव होऊन बसला

उठून ध्येयच जर आले तर कदाचित काही घटेल
वांच्छित उद्देश तर माझा अपंग होऊन बसला

हितगुज निसटुन गेली बातचीतची करामत परंतु
काही न बोलण ही माझं, माझा आवाज होऊन बसला

उपकृत ए माझ्या मारका ए संजीवका माझ्या
विष-अग्नी जो तू दिला होता तो जल-अमृत होऊन बसला

'शहजाद' च्या जीवाला एकूण-एक सर्व शत्रू मिळवून
वेदना जी उठली की जीव शरीराहून विभक्त होऊन बसला


- फरहत शहजाद

Thursday, January 7, 2010

फैज़

गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
धुल  के  निकलेगी  अभी  चश्म  ए  महताब  से  रात
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है ....
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
और  मुश्ताक  निगाहों  की  सुनी  जाएगी
और  मुश्ताक  निगाहों  की  सुनी  जाएगी
और  उन  हाथों  से  मस  होंगे  ये  तरसे  हुए  हाथ
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है....
उनका  आँचल  है  के  रुखसार  के  पैराहन  है
उनका  आँचल  है  के  रुखसार  के  पैराहन  है
कुछ  तो  है  जिस  से  हुई  जाती  है  चिलमन  रंगीन
जाने  उस  ज़ुल्फ़  की  मौहूम  घनी  छावओं  में
टिमटिमाता  है  वो  आवेज़ा  अभी  तक  के  नहीं
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है....
आज  फिर  हुस्न  ए  दिलारा  की  वही  धज  होगी
आज  फिर  हुस्न  ए  दिलारा  की  वही  धज  होगी
वोही  ख्वाबीदा  सी  आँखें  वोही  काजल  की  लकीर
रंग  ए रुखसार  पे  हल्का  सा  वो   गाजे   का  गुबार 
संदली  हाथ  पे  धुंधली  सी  हिना  की  तहरीर
अपने  अफ़्कार  की  अशआर  की  दुनिया  है  यही
जाने  मज़मून  है  यही  शाहिदे  माना  है  यही
अपना  मौजू -ए -सुखन  इनके  सिवा  और  नहीं
तब्बा  शायर  का  वतन  इनके  सिवा  और  नहीं
यह  खूँ  की  महक  है  के  लबे  यार  की  खुशबू
यह  खूँ  की  महक  है....
यह  खूँ  की  महक  है  के  लबे  यार  की  खुशबू
किस  राह  की  - जानिब  से  सबा  आती  है  देखो
गुलशन  में  बहार  आई.... 
गुलशन  में  बहार आई  के  जिंदा  हुआ  आबाद
किस  संद  से  नगमों  की  सदा  आती  है  देखो
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
धुल  के  निकलेगी  अभी  चश्म  ए  महताब  से  रात
गुल  हुई  जाती  है  अफसुर्दा  सुलगती  हुई  शाम
गुल  हुई  जाती  है.....

- फैज़


Tuesday, January 5, 2010

आँखों को इंतज़ार का

आँखों को इंतज़ार का, दे के हुनर चला गया
चाहा था एक शख्स को, जाने किधर चला गया

दिनकी वो महफिलें गयी, रातों के रत जगें गए
कोई समेट कर मेरे, शामो सहर चला गया

झोंका है एक बहार का, रंग-ए-ख्याल-ए-यार भी
हरसू बिखर बिखर गयी खुशबू, जिधर चला गया

उसके ही दम से दिल में आज, धुप भी चांदनी भी है
दे के वो अपनी याद के, शम्सो क़मर चला गया

कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर, कब से भटक रहा है दिल
हमको भुला के राह वो, अपनी डगर चला गया


Monday, January 4, 2010

यूँ जिंदगी की राहों में....

यूँ... जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में....
इक रोशनी अंधेरों में बिखरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में....

वो हादसा वो पहली मुलाक़ात क्या कहूँ, कितनी अजब थी सूरते हालात क्या कहूँ
वो कहर वो गज़ब वो जफा मुझको याद है,
वो उसकी बेरुखी की अदा मुझको याद है,
मिटता नहीं  है जहेन से यूँ छा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में....

पहले वो मुझको देखकर बरहम सी हो गई,
पहले..वो मुझको देखकर बरहम सी हो गई, फिर अपने ही नसीब खयालों में खो गई
बेचारगी पे मेरे उसे रहम आ गया,
शायद मेरे तड़पने का अंदाज भा गया,
सांसों से भी करीब मेरे आ गया कोई...
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में....

अब उस गिले तबाह की हालत ना पूछिये,
अब उस गिले तबाह की हालत ना पूछिये, बेनाम आरजू की लजत ना पूछिये
इक अजनबी था रूह का अरमान बन गया,
इक हादसा था प्यार का उनवान बन गया,
मंजिल का रास्ता मुझे दिखला गया कोई...
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई..
यूँ जिंदगी की राहों में....

इक रोशनी अंधेरों में बिखरा गया कोई
यूँ जिंदगी की राहों में टकरा गया कोई


यूँ जिंदगी की राहों में....

कैसर

मेरी  आँखों  को  आँखों  का  किनारा  कौन  दे  गा
समंदर  को  समंदर  में  सहारा  कौन  दे  गा

मेरे  चेहरे  को  चेहरा  कब  इनायत  कर  रहे  हो
तुम्हें  मेरे  सिवा  चेहरा  तुम्हारा  कौन  दे  गा

मुहब्बत  नीला  मौसम  बन  के  आ  जाएगी  इक  दिन
गुलाबी  तितलियों  को  फिर  सहारा  कौन  दे  गा

 
मेरी  आवाज़  में  आवाज़  किस  क़ी  बोलती  है
मेरे  गीतों  को  गीतों  का  किनारा  कौन  दे  गा 




बदन  में  एक  सहरा  जल  रहा  है  बुझ  रहा  है
मेरे  दरयाओं  को  'कैसर'  इशारा  कौन  दे  गा


 - कैसर

Sunday, January 3, 2010

यह जफ़ा-ए-गम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा
वोह नजाते दिल का आलम
तेरा हुस्न दस्त-ए-ईसा
तेरी याद रूह-ए-मरियम

दिलों जाँ फ़िदा-ए-राहें
कभी आके देख हमदम
सरकुए दिलफिगारा
शब-ए-आरजू का आलम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा.....

तेरी दीद से सिवा हैं
तेरे शौक में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है
तेरे गेसूओं की शबनम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा ...

लो सुनी गई हमारी
यूँ फिरे है दिल के फिरसे
वोही गोशा ए कफस है
वोही फस्ले गुल का मातम  

यह जफ़ा-ए-गम का चारा....

ये अजब कयामतें है
तेरी राहगुजर में गुजरा
न हुआ के मर मिटे हम
ना हुआ के जी उठे हम

यह जफ़ा-ए-गम का चारा...

- फैज़ अहमद फैज़

 

Saturday, January 2, 2010

कटे नाहि रातें मोरी... पिया तोरे कारन कारन.... पिया तोरे कारन कारन
कटे नाहि रातें मोरी..... पिया तोरे कारन कारन ....
.....पिया तोरे कारन कारन...

कालें कालें बादल छायें... देखि देखि जी ललचाये ....
कालें कालें बादल छायें....  देखि देखि जी ललचाये .... कैसे आऊ पास तिहारे ... दुरी गए मोरे साजन
कैसे आऊ पास तिहारे ... दुरी गए मोरे साजन.....
......दुरी गए मोरे साजन...

कटे नाहि रातें मोरी..... पिया तोरे कारन कारन .... पिया तोरे कारन कारन

भीगा भीगा मौसम आया .... पिया का संदेसा लाया...
भीगा भीगा मौसम आया .... पिया का संदेसा लाया...मनिवा को चैन न आवैं ... तरसें है मोरे नैना 
मनिवा को चैन न आवैं ... तरसें है मोरे नैना 
... तरसें है मोरे नैना  .........

कटे नाहि रातें मोरी..... पिया तोरे कारन कारन .... पिया तोरे कारन कारन

कटे नाहि रातें मोरी... पिया तोरे कारन कारन.... पिया तोरे कारन कारन
.. पिया तोरे कारन कारन ....
.....पिया तोरे कारन कारन...