किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...
सब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...
वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..
जुल्म यह है के है यकता तेरी बेगानारवी
लुफ़्त यह है के मैं अब तक तुझे अपना समझूँ...
Video _ http://www.youtube.com/watch?v=TSJlQWhC-dc&feature=player_embedded#!
किसको कातिल मैं कहूँ किसको मसीहा समझूँ..
ReplyDeleteसब यहाँ दोस्त ही बैठे है किसे क्या समझूँ...
badhiyan. !
dhanywad
ReplyDeletelafj shayar ke hai..
sirf yahan peshkari hai.
bahut achchha laga...wah.
ReplyDeleteवो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
ReplyDeleteअब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..
बहुत अच्छी पंक्तियां हैं...अच्छी रचना
dhanywad mahendra vermaji
ReplyDeleteVeenaji yah rachana Ahmed Nadeem Qasmi ki hai..
ReplyDeleteदोस्त ही हो खंजेर लिए इन्तेज़ार कर रहे हैं........
ReplyDeleteदुश्मन होते तो निपट लेता.
dost hi kabhi maseeha banke aur kabhi qatil banke samne aata hai..
ReplyDeleteaur na kisi dushman ki yah khasiyat hai..
बेहतरीन!
ReplyDeletedhanywad..
ReplyDeleteदिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ReplyDeleteऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..
बहुत ख़ूब!
वाह!
ReplyDeleteवो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीन होता था...
अब हकीक़त नज़र आये तो उसे क्या समझूँ..
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे..
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ..