वो कोई और न था चंद खुश्क पत्ते थे
शज़र से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे
शज़र से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे
अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया
अभी अभी तो हम एक -दुसरे से बिछड़े थे
अभी अभी तो हम एक -दुसरे से बिछड़े थे
तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली
कलि कलि में खिज़ां के चिराग जलते थे
कलि कलि में खिज़ां के चिराग जलते थे
तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे
ये और बात की हम आदमी तो अच्छे थे
ये और बात की हम आदमी तो अच्छे थे
शब् -ए -खामोश को तनहाई ने ज़बान दे दी
पहाड़ गूंजते थे दश्त सनसनाते थे
पहाड़ गूंजते थे दश्त सनसनाते थे
वो एक बार मरे जिन को था हयात से प्यार
जो ज़िन्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे
जो ज़िन्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे
नए ख्याल अब आते हैं ढल के ज़हन मैं
हमारे दिल मैं कभी खेत लहलहाते थे
हमारे दिल मैं कभी खेत लहलहाते थे
ये इरतिका का चलन है के हर ज़माने में
पुराने लोग नए आदमी से डरते थे
पुराने लोग नए आदमी से डरते थे
नदीम जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी
के एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे
के एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे
तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे
ReplyDeleteये और बात की हम आदमी तो अच्छे थे !!!
:)
dhanywad Sakhi..
ReplyDeleteतुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली
ReplyDeleteकली कली में खिज़ां के चराग जलते थे
खिज़ां के चराग.... वाह !
बहुत अच्छी ग़ज़ल !!
dhanywad daanish..
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