Monday, November 28, 2011

अब और..

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाये हम
ये भी बहोत है तुझको अगर भूल जाये हम

इस जिंदगी में इतनी फ़रागत किसे नसीब
इतना ना याद आ के तुझे भूल जाये हम

तू इतनी दिलज़दा तो न थी ए शब्-ए-फिराक
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटाये हम

वो लोग अब कहाँ है जो कहते थे कल फराज
ये ए खुदा ना कर तुझको भी रुलाये हम

- अहमद फ़राज़

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