वोह तो न मिल सकें हमें रुसवाइयाँ मिली
लेकिन हमारे इश्क को रानाइयां मिली
आइना रख के सामने आवाज दी उसे
उसके बगर जब मुझे तन्हाईयाँ मिली
पूछा जो दिल की मैंने तबाही का माजरा
हसकर जवाब दे मुझे अंगड़ाइयां मिली
लेकिन हमारे इश्क को रानाइयां मिली
आँखों में उनकी डूब के देखा है बारहां
जिनकी थी आरजू न वो गहराइयाँ मिली
आइना रख के सामने आवाज दी उसे
उसके बगर जब मुझे तन्हाईयाँ मिली
आए थे वो नजर मुझे फूलों के आसपास
देखा करीब जाके तो परछाइयाँ मिली
हसकर जवाब दे मुझे अंगड़ाइयां मिली
नासिर दिल-ऐ-तबाह न उनको दिखा सदा
मिलने को बारहां उसे तन्हाईयाँ मिली
- नासिर
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
वाह .. सुन्दर ..
ReplyDeleteदेखा करीब जाके तो परछाइयाँ मिलीं ....
ReplyDeleteऔर मज़ा तो ये है कि हम उन परछाइयों को भी नहीं छोडना चाहते ...जिए जा रहे हैं उन्ही को पकडे हुए.
वाह!!
ReplyDeleteबहुत खूब..
हँसकर जवाब में मुझे अंगड़ाइयाँ मिली.
ReplyDeleteपूरी गज़ल ही लाजवाब है मगर इस पंक्ति ने तो बस लूट ही लिया.
बहुत खूब.. ..वाह!
ReplyDeletekhayaalaat ki rau mei behti huee
ReplyDeleteachhee gazal ke liye
badhaaee ... !
bahut sundar bhavabhivykti
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteसदा जी की हलचल से आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.
आभार.
धन्यवाद आप सब का..
ReplyDeleteयह नासिर साहब की अदाकारी है.. मेरा तो सिर्फ एक माध्यम है आप सबको याद दिलाने का..
धन्यवाद पुनह एक बार.. और सदा जी आपका खास तौर से..