Thursday, February 23, 2012

इक लफ्ज़े मोहब्बत

इक लफ्ज़े मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिले आशिक़ फैले तो ज़माना  है

आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे है
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है

यह इश्क नहीं आसान इतना ही समझ लीजिए
इक आग का दरिया और डूब के जाना है

दिल संगे मलामत का हर चंद निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है दिल ही तो ज़माना है

आंसू तो बहोत से हैं आँखों में जिगर लेकिन
बिंध जाये तो मोती है रह जाये तो दाना है

- जिगर मुरादाबादी
 

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