वह सूरतें इलाही किस देस बस्तियाँ है..
अब जिनके देखनेको आँखे तरस्तियाँ है..
बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर
मिजगां की यह घटायें अब तक बरस्तियाँ है..
क्यों कर ना हो यह ज़ख्मी शीशा सा दिल हमारा
उस शौक की निगाहें पत्थर में धस्तियाँ है..
कीमत में उनकी गो हम दो जुग को दे चुके है..
उस यार की निगाहें किस पर भी सस्तियाँ है..
जब मैं कहा यह उसे सौदा को अपने मिलके..
इस साल तू है साकी और मैं परस्तियाँ है..
अब जिनके देखनेको आँखे तरस्तियाँ है..
बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर
मिजगां की यह घटायें अब तक बरस्तियाँ है..
क्यों कर ना हो यह ज़ख्मी शीशा सा दिल हमारा
उस शौक की निगाहें पत्थर में धस्तियाँ है..
कीमत में उनकी गो हम दो जुग को दे चुके है..
उस यार की निगाहें किस पर भी सस्तियाँ है..
जब मैं कहा यह उसे सौदा को अपने मिलके..
इस साल तू है साकी और मैं परस्तियाँ है..
बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर
ReplyDeleteमिजगां की यह घटायें अब तक बरस्तियाँ है..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार
सुन्दर शब्द रचना ।
ReplyDeletesimply beautiful!
ReplyDeletekeep introducing some more..