Monday, December 6, 2010

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुःख सहते है
हम ने सुना था इस बस्ती में दिलवाले भी रहते है

एक हमे आवारा कहना कोई बड़ा इल्जाम नहीं
दुनिया वाले दिलवालों को और बहोत कुछ कहते है

बीत गया सावन का महिना मौसम ने नजरे बदले
लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आंसू बहते है

जिन की खातिर शहर भी छोड़ा, जिन के लिए बदनाम हुए
आज वो भी हम से बेगाने बेगाने से रहते है

वो जो अभी इस राहगुजर से चाक ए गिरेबाँ गुजरा था
उस आवारा दीवाने को जालिब जालिब कहते है


-जालिब

2 comments: