दयार-ए-दिल की रात में चराग सा जला गया
मिला नहीं तो किया हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िन्दगी ने भर दिया
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
यह सुबहओं की सफेदिया यह दोपहर की जर्दिया
अब आईने में देखता हूँ में कहाँ चला गया
वो दोस्ती तो खैर अब नसीब-ए-दुश्मन हुई
वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया
यह किस खुशी की रीत पर ग़मों को नींद आ गई
वोह लहर किस तरफ गई यह में कहाँ समां गया
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