Thursday, September 8, 2011

राज़ की बातें

राज़ की बातें लिखी और ख़त खुला रहने दिया
जाने क्यूँ रुसवाईओं का सिलसिला रहने दिया

उम्र भर मेरे साथ रहकर वो ना समजा दिल की बात
दो दिलों के दरमियाँ इक फ़ासला रहने दिया

अपनी फ़ितरत बदल पाया न इसके बावजूद
खत्म की रंजिश मगर फिर भी गिला रहने दिया

मैं समज़ता था ख़ुशी देगी मुझे सबीर-ए-फरेब
इसलिए मैं ने ग़मों से राबिता रहने दिया


- सबीर जलालाबादी

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