Tuesday, September 6, 2011

हिज्र की रात का अंजाम तो प्यारा निकला..
वो ही सूरज के जो डूबा था दोबारा निकला..

वक़्त ने जब भी मेरे हाथ से मिस्हल छिनी
ज़हन में तेरे तसव्वुर का सितारा निकला..

मैं तेरे क़ुर्ब से डरता हूँ के तू जिन्दा रहें
मैं समन्दर में जब उतरा तो किनारा निकला..

तू के था बज़्म में तस्वीर कहाँ भेजी थी 
मेरी तन्हाई में क्यूँ अंजुमन आरा निकला..

जुल्मते शब ने किया जिनका तसव्वुर मुमकिन
यह अँधेरा तो उजाले का सहारा निकला..


1 comment:

  1. Fourth stanza not kahan bheji but kam-aamezi -reserved, introvert.

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