ये क्या जाने में जाना है जाते हो खफा हो कर
मैं जब जानूं मेरे दिल से चले जाओ जुदा हो कर
क़यामत तक उडेगी दिल से उठकर खाक आंखों तक
इसी रस्ते गया है हसरतों का काफिला हो कर
तुम्ही अब दर्द-ए-दिल के नाम से घबराए जाते हो
तुम्ही तो दिल में शायद आए थे दर्द-ए-आशियाँ हो कर
यूं ही हमदम घड़ी भर को मिला करते थे बेहतर था
के दोनों वक्त जैसे रोज़ मिलते हैं जुदा हो कर
- सीमाब अकबराबादी
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