Wednesday, December 2, 2009

साकियाँ जाए कहाँ हम तेरे मयखाने से
शहर के शहर नजर आते है वीराने से...
ये जो कुछ लोग नजर आते है दीवाने से
इनको मतलब है न साकी से न पैमाने से...
जोड़ कर हाथ ये साकी है गुजारिश मेरी
मुझको आखों से पिला, गैर को पैमाने से...
मुझको आते हुए तो नासिर सबने देखा,
देखा जाते हुए न किसीने मुझे मयखाने से....
( शायर- हकीम नासिर)

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