Sunday, December 20, 2009

फैज़

हमके ठहरे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद

फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद

कब नज़र में आएगी बेदाग़ सब्जे की बहार

खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद

थे बहोत बेदर्द लम्हें ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क के

थी बहोत बे-मेहर सुबहें मेहरबान रातों के बाद

उनसे जो कहने गए थे 'फैज़' जा सदका किये

अनकही ही रह गयी वोह बात सब बातों के बाद
 
- फैज़ अहमद फैज़

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