फिर उसी राह गुज़र कर शायद
हम कभी मिल सकें मगर शायद
जान पहचान से क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर शायद
मुन्तजिर जिनके हम रहे उनको
मिल गए और हम सफ़र शायद
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं 'फ़राज़'
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद
- अहमद फ़राज़
हम कभी मिल सकें मगर शायद
जान पहचान से क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त गौर कर शायद
मुन्तजिर जिनके हम रहे उनको
मिल गए और हम सफ़र शायद
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं 'फ़राज़'
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद
- अहमद फ़राज़
जो भी बिछड़े हैं, कब मिले हैं 'फ़राज़'
ReplyDeleteफिर भी तू इंतजार कर , शायद
बहुत खूबसूरत शेर है ....
पढ़ कर बहुत सुकून मिला . . .
धन्यवाद दानिश
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