Thursday, April 21, 2011

फिर....

फिर  उसी  राह  गुज़र  कर  शायद
हम  कभी  मिल  सकें  मगर  शायद

जान  पहचान  से  क्या  होगा
फिर  भी  ऐ  दोस्त  गौर  कर  शायद

मुन्तजिर  जिनके  हम  रहे  उनको
मिल  गए  और  हम  सफ़र  शायद

जो  भी  बिछड़े  हैं  कब  मिले  हैं  'फ़राज़'
फिर  भी  तू  इंतज़ार  कर  शायद

- अहमद  फ़राज़

2 comments:

  1. जो भी बिछड़े हैं, कब मिले हैं 'फ़राज़'
    फिर भी तू इंतजार कर , शायद

    बहुत खूबसूरत शेर है ....
    पढ़ कर बहुत सुकून मिला . . .

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  2. धन्यवाद दानिश

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