Sunday, December 27, 2009

कैसे छुपाऊं..

कैसे छुपाऊं राजे-गम, दीदा-ए-तर को क्या करूँ
दिल की तपिश को क्या करूँ, सोजे-जिगर को क्या करूँ

शोरिशे-आशिक़ी कहाँ, और मेरी सादगी कहाँ
हुस्न को तेरे क्या कहूँ, अपनी नज़र को क्या करूँ

ग़म का न दिल में हो गुज़र, वस्ल की शब हो यूँ बसर
सब ये क़ुबूल है मगर, खौफे-सहर को क्या करूँ

हाल मेरा था जब बतर, तब न हुई तुम्हें खबर
बाद मेरे हुआ असर, अब मैं असर को क्या करूँ

- हसरत मोहानी



2 comments:

  1. दर्दे मुहब्बत दिल मे छुपाये , आंख के आसुं कैसे छुपावु

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  2. आरजू का बज्मे ऐश यहाँ मुहमल मेरे जिंदगी में
    मुहर-ब-लब जो निदा गश्ते महशर को क्या करूँ

    इच्छांचा आनंदोत्सव इथे निरर्थक माझ्या जीवनात
    नीरव शांत जी साद चक्राकार वादळाचे काय करू

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