तर्के-तअल्लुकात पे रोया ना तू न मैं
लेकिन यह क्या के चैन से सोया ना तू न मैंवो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी
के धुप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
के धुप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
अदावतें थी तगाफुल था रंजिशें थी मगर
बिछड़ने वाले में सब कुछ था बेवफाई न थी
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी
काजल दारू किरकिरा सुरमा सहा न जाये
जिन नैन में पी बसे दूजा कोन न समाये
किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन सदा तो आयी थी लेकिन कोई दुहाई न थी
कभी यह हाल के दोनों में यकदिली थी नसीर
कभी यह मर्हल्ला जैसे के आशनाई न थी
- नसीर
Source :- http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com
धन्यवाद बेहतरीन शेर पढ़वाने का.
ReplyDeletethanks....
ReplyDeleteBahur hi naayab postings. Abida ji jab soofi kalam gaati hai to apne sur ke paron par man parindon ko bhi uda paane mein sashakt rahi hai..daad!!
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