तुम्हें दिललगी भूल जानी पड़ेगी.....मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे.. कभी दिल किसी से लगा कर तो देखो
होठों के पास आये हसीं क्या मजाल है..दिल का मुहमल्ला है कोई दिललगी नहीं
जख्म पे जख्म खा के ज़ी अपने लहू के घुट प़ी.. आह ना कर लबों को स़ी..इश्क है दिललगी नहीं
दिल लगाकर पता चलेगा तुम्हें ...आशकी की दिललगी नहीं होती..
कुछ खेल नहीं है इश्क की लाग....पानी न समझ है आग है आग
खूँ रुलाएगी यह लगी दिलकी..खेल समझो न दिललगी दिलकी
यह इश्क नहीं आसाँ.. बस इतना समझ लीजिये..इक आग का दरया है..और डूब के जाना है
तुम्हें दिललगी भूल जानी पड़ेगी.....मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो..तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे..
तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हसोगे..कभी दिल किसी से लगा कर तो देखो
No comments:
Post a Comment